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Wednesday, August 25, 2021

बातचीत: डायरेक्टर धीरज कुमार बोले- मेरे जीवन की एक बड़ी सच्चाई ये है कि मैं खुद को कभी दिव्यांग मानता ही नहीं - Dainik Bhaskar

7 घंटे पहलेलेखक: ज्योति शर्मा

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"मेहनत करे इंसान तो क्या काम है मुश्किल।" ये बात अगर किसी पर पूरी तरह फिट बैठती है या फिर सच्चे अर्थों में किसी ने इसको चरितार्थ किया है तो वो नाम है फिल्म डायरेक्टर धीरज कुमार। बिहार के टिपिकल मिडिल क्लास फैमिली से, फिल्म जगत में बतौर डायरेक्टर अपना जौहर दिखाने का सपना लेकर वो इस मायानगरी मुबंई में आये थे। धीरज कुमार की तारीफ इस लिए भी ज्यादा होनी चाहिए क्योंकि वो दिव्यांग हैं, हालांकि वो खुद को कभी दिव्यांग नहीं मानते है। धीरज ने भोजपुरी फिल्मों से कैरियर की शुरुआत करके, बॉलीवुड में 'काशी', 'सुस्वागतम खुशामदीद' जैसी फिल्मों को डायरेक्ट कर रहे हैं। धीरज ने दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत की और कहा मेरे जीवन की एक बड़ी सच्चाई ये है कि मैं खुद को कभी दिव्यांग नहीं मानता हूं।

Q.आपके फिल्मी करियर की शुरुआत कैसे हुई? कब से ये बीज आपके दिलों दिमाग में अंकुरित हुआ?
A.जी मैं पूरी बात एक साथ बता देता हूं। बचपन से ही मुझे फिल्म बनाने का शौक था। जब मैं 1 वर्ष का था, तभी मुझे पोलियो हो गया था। मेरा पूरा परिवार मुझे लेकर अधिकतर अस्पताल में ही रहता था। इसके अलावा मां थिएटर में पिक्चर
देखने जाया करती थीं। उस जमाने में टीवी पर सिर्फ दूरदर्शन हुआ करता था। ऑनलाइन फिल्में देखने की सुविधाएं नहीं थीं। मुझे बचपन से ही लगता था कि मैं बड़ा होकर फिल्में बनाऊंगा। मैं एक टिपिकल मिडल क्लास फैमिली से आता हूं। उस सपने को पूरा करने के लिए मैं लगातार संघर्ष करता रहा। बचपन में ही पोलियो हो गया। यहां तक पहुंचने का सफर बहुत ही संघर्ष भरा रहा है। मगर दिल में हमेशा एक जज्बा था। मुझे यह करना ही है। अब मुझे लगता है कि मैंने अपने सपने को पूरा किया है। अब सही रास्ते पर आ गया हूं।

Q.आपकी पहली फिल्म एक भोजपुरी फिल्म थी, एक डायरेक्टर के तौर पर ब्रेक मिलना और आज तक के जीवन के अनुभवों के बारे में बताएं?
A.जब मैं मुंबई आया तो मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा दौर था। अच्छे लोगों का मिलना हमेशा बड़ी चुनौती वाला होता है। कई बार लगता था, काम हो जाएगा, लेकिन अपना काम होते-होते रह जाता था। निराशा होती थी कि अब घर लौट चलें। मगर दिल ने कभी हिम्मत नहीं हारी। लगता था कभी न कभी तो होगा। इसी बीच हमारी मुलाकात राहुल रॉय से हुई। राहुल जो 'आशिकी' के हीरो हैं। वो एक भोजपुरी फिल्म बना रहे थे। तब उन्हें एक डायरेक्टर की जरूरत थी। उन्होंने मुझसे बात की और मुझे फिल्म की स्टोरी बताइ। स्टोरी में एक क्लास था, जो मुझे पसंद था। वहीं से हमारे करियर की शुरुआत हुई। मनोज तिवारी ने उसमें बतौर कलाकार काम किया था। उसके बाद मैंने राहुल की एक और फिल्म 'सबसे बड़ा मुजरिम' भी की थी। उसके बाद मैं भोजपुरी फिल्में नहीं कर पाया क्योंकि मुझे लगा कि मुझे हिंदी फिल्में करनी हैं और मैंने उसी का सपना देखा है। उसके बाद मैं लगातार लगा रहा और फिर 'काशी' की स्क्रिप्ट आई। मैंने उसको किया जहां से मेरी हिंदी फिल्मों की शुरुआत हुई।

Q.'काशी' फिल्म डायरेक्ट करने के बाद आपकी जर्नी में क्या बदलाव आए? फिर आप कैसे आगे बढ़े?
A.मैं उस दौर में संघर्ष कर रहा था। जब आप एक्टर को अप्रोच करते हो तो वो पी.आर. के पास भेज देते थे। जब उनसे अप्रोच करो तो वो कारपोरेट के लोगों के पास भेज देते थे। ऐसे में इंसान क्या कर सकता था। मगर आज के दौर में लोग स्क्रिप्ट को, कंटेंट को, ज्यादा महत्व दे रहे हैं। आज की तारीख में जो अच्छे लोग हैं, मेहनती लोग हैं और टैलेंटेड लोग हैं। उन्हें काम मिल रहा है। शरमन जोशी के पास जब मैं पहली बार गया, तो वो मुझे एक अच्छे एक्टर लगे। उनके साथ काम करके ऐसा लगा। वाह! इतने बेहतरीन एक्टर हैं। जब मैंने उनको कहानी बताई, तो दो दिन के अंदर उनका फोन आ गया। बहुत अच्छी स्टोरी है मैं काम करने के लिए तैयार हूं। उसके पहले मैं बहुत से कलाकारों के पास गया था, लेकिन किसी ने उस स्टोरी को तवज्जो नहीं दी थी। जब शरमन जोशी ने उसके लिए हां बोला। तो मुझे इस बात की खुशी थी कि चलें, हमारी शुरुआत हुई। कुछ अच्छा तो हुआ। एक अच्छे और बड़े एक्टर के साथ काम करने का मौका मिल रहा है। मुझे उनके साथ काम करके बहुत मजा आया। फिल्म भी अच्छी बनी और लोगों ने उसे पसंद भी किया।

Q.'सुस्वागतम खुशामदीद' जैसी फिल्म में आप काम कर रहे हैं इस फिल्म के बारे में बताएं? कितनी शूटिंग हो चुकी है? कितना काम बाकी है? फिल्म की क्या खासियत है?
A.इन दोनों शब्दों का मतलब वेलकम, वेलकम, यानी स्वागत है। हमारी फिल्म रोमकॉम यानी रोमांटिक कॉमेडी है। ये फिल्म सब को हंसाते हुए एक अच्छा मैसेज दे जाती है। विक्रम सम्राट ने इसमें बहुत अच्छा काम किया है। लगभग पचहत्तर फीसदी उसका काम पूरा हो चुका है। अगले महीने तक बाकी काम भी कंप्लीट हो जाएगा। जिसके बाद जल्दी हम रिलीज के लिए जाएंगे।

Q.शूटिंग की लोकेशन कहां कहां थी और आगे कहां करेंगे?
A.फिल्म का काफी बड़ा हिस्सा दिल्ली और आगरा में शूट किया गया है। फिल्म के आगे का भी कुछ हिस्सा आगरा में ही शूट किया जाएगा।

Q.ईसाबेल से मिलने क्या कैटरीना कभी सेट पर आती थीं। या वो अपनी बहन को किसी तरह सपोर्ट करती थीं और शायद इस फिल्म में कैटरीना भी हो सकती हैं?
A.जी नहीं ऐसा नहीं है। कैटरीना सेट पर कभी नहीं आईं। मगर उनकी बहन ईसा से हमेशा उनकी प्रॉपर बात होती थी। वो पूछती थीं आज का दिन कैसा जा रहा है? क्या चल रहा है, कैसे काम हो रहा है? ईशा को कुछ मदद की जरूरत होती थी, तो वो उन्हें फोन पर मदद करने की कोशिश करती थी। उन दोनों की हमेशा बात होती रहती थी।

Q.स्वरा भास्कर के साथ आप एक और फिल्म कर रहे हैं उसकी क्या स्टोरी है और कहां तक काम चला है उसके बारे में बताएं?
A.फिल्म का नाम 'बिहान' है। यह फिल्म बिहार की एक रियल स्टोरी पर आधारित कहानी है। बहुत जल्द ही हम उसका अनाउंसमेंट करने वाले हैं। यह बहुत ही बेहतरीन फिल्म है। मेरी हमेशा से कोशिश होती है कि मैं मनोरंजन के साथ फिल्म के अंत में लोगों को एक मैसेज, एक सीख दे सकूं। जैसे 'वेलकम' और 'खुशामदीद' में एक बेहतरीन मैसेज है, और उसी तरह का मैसेज इस फिल्म में भी है।

Q.क्या आज भी आपको प्रोड्यूसर ढूंढने या मिलने में दिक्कतें आती हैं?
A.जब तक बेहतरीन सफलता नहीं मिलेगी, तब तक तो संघर्ष करना ही पड़ेगा। सफलता का कोई पैरामीटर नहीं होता। आपको सफलता मिलती है, उसके बाद आपको लगता है और सफल हो जाओ, और आगे बढ़ जाओ। यह अनवरत करना पड़ेगा नहीं तो आप अपनी जगह खो देंगे। इसके लिए आप को लगातार मेहनत करते रहना पड़ेगा। हम लोग मेहनत कर रहे हैं। बाकी सब कुछ ईश्वर के हाथ में है।

Q.फिल्म इंडस्ट्री में आप इकलौते ऐसे डायरेक्टर हैं, जो शारीरिक रूप से दिव्यांग है इसकी वजह से आपको शारीरिक और मानसिक रूप से क्या चुनौतियां पेश आई हैं?
A.बचपन से ही मेरे परिवार ने मुझे ऐसा पाला है, कि मुझे इस बात का कभी एहसास ही नहीं हुआ कि मैं एक दिव्यांग हूं। जीवन में ऐसा कई बार हुआ है कि लोगों ने मेरी इस कमी को लेकर कुछ कमेंट किया है। लेकिन मैंने उस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया है। उनका जो मानना है, वो माने, मगर मुझे जो करना है, मैं वो कर रहा हूं, और करूंगा। मैं हमेशा जीवन में सकारात्मक चीजों पर ध्यान देता हूं। मेरे जीवन की एक सच्चाई यह है कि मैं कभी मानता ही नहीं कि मैं एक दिव्यांग हूं।

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