- Hindi News
- Db original
- Indian Army Retired Gay Major Film Script Rejected; Filmmaker Onir Exclusive Interview
मुंबई5 घंटे पहलेलेखक: राजेश गाबा
12 साल पहले सेना छोड़ चुके एक समलैंगिक मेजर जे सुरेश पर बन रही फिल्म की स्क्रिप्ट को सेना ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। नेशनल अवॉर्ड विनर गे फिल्मकार ओनिर ने सवाल उठाया है कि क्या भारतीय सेना की नजर में समलैंगिक होना गैर कानूनी है? उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का 2018 वाला ऐतिहासिक फैसला ‘समलैंगिकता अपराध नहीं है’ का औचित्य ही क्या है? ओनिर को साल 2011 में उनकी फिल्म 'आई एम' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में ओनिर कहा कि ‘मेरी फिल्म की स्क्रिप्ट को आर्मी ने इसलिए रिजेक्ट किया, क्योंकि जो मेरी फिल्म का नायक आर्मी मैन है वो गे है। आर्मी के हिसाब से आर्मी में गे होना लीगल नहीं है।’
सुनिए ओनिर आपबीती उनकी जुबानी-
मेरी फिल्म की स्क्रिप्ट आर्मी के गे मेजर जे सुरेश की असल जिंदगी से प्रेरित है, जिन्होंने गे होने की वजह से सेना में अपना पद छोड़ दिया था। यह उनकी बायोपिक नहीं है। बस मेरी स्टोरी उनसे इंस्पायर है। उसके बाद मैंने डेढ़ साल रिसर्च और स्टडी करके अपनी फिल्म 'वी आर' की कहानी लिखी। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि रियल स्टोरी को भी रिजेक्ट कर दिया। वो भी सुप्रीम कोर्ट के 2018 के डिसीजन के बाद, जिसमें समलैंगिकता को मान्यता मिली।
वीआर फिल्म की कहानी एक बहुत ही खूबसूरत लव स्टोरी है। एक सच्ची घटना से प्रेरित है। उसमें नायक गे आर्मी मैन है। उसकी अपनी इच्छाएं हैं। कैसे वो जीवन अपनी पहचान के लिए संघर्ष करता है। उसके जद्दोजहद की, खुद से, समाज से, आर्मी से, परिवार से इसी पर बेस्ड मेरी कहानी है। यह फिल्म मेरी नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म ‘आईएम’ का सीक्वल भी है।
‘जवान के रूप में समलैंगिक चरित्र दिखाना अवैध’
मैंने यह स्टोरी मिड दिसंबर में डिफेंस मिनिस्ट्री को भेजी थी, क्योंकि नए कानून के अनुसार, यदि आपका भारतीय सेना से कोई चरित्र या कुछ भी लेना-देना है, तो उस फिल्म को बनाने के लिए आपको भारतीय सेना से एनओसी लेना ही होगा। अन्यथा, आप वह प्रमाणित नहीं कर पाएंगे। मुझे 4-5 दिन पहले डिफेंस मिनिस्ट्री की तरफ से एक ईमेल मिला, जिसमें बताया गया कि आपकी रिक्वेस्ट को रिजेक्ट कर दिया गया है। उसके पहले फोन पर भी डिफेंस मिनिस्ट्री की तरफ से मुझे कहा गया कि हमने आपके कंटेंट को एनालाइज किया, स्क्रिप्ट में कोई समस्या नहीं हैं। लेकिन सेना के जवान के रूप में समलैंगिक चरित्र दिखाना अवैध है, इसलिए उसे रिजेक्ट किया गया है।
‘आज आर्मी फिल्में सेंसर कर रही, कल पुलिस, पार्टियां करेंगी’
मुझे लगता है कि अगर फिल्म में कुछ गलत है तो हमारे यहां पहले से फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड मौजूद है। अब आर्मी भी सेंसर करेगी, कुछ दिन बाद पुलिस सेंसर करेगी, फिर हर पॉलिटिकल पार्टी सेंसर करेगी। ऐसा ही आजकल होता है कि किसी भी धर्म का कुछ भी दिखाओ, वो भी सेंसर करेगा तो फिल्ममेकर कैसे अपनी बात रखेगा। सबका सेंटिमेंट आप ध्यान रख रहे हो, लेकिन एक आर्टिस्ट के सेंटिमेंट का तो कोई ख्याल ही नहीं रखता है। यह सोसायटी के लिए हेल्दी नहीं है।
मैं अभी सोचता हूं कि जब मैंने ‘माय ब्रदर निखिल’, ‘आईएम’ और ‘शब’ फिल्म बनाई। जिसमें LGBT के राइट्स पर बात की, तब ये क्रिमिनल राइट्स था। तब ऐसा हालात होता तो मैं फिल्म बना ही नहीं पाता। तब फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला। मैंने आईएम फिल्म में दिखाया था कि पुलिस कैसे एक सिविलियन को सेक्सुअली असॉल्ट करता है, लेकिन अभी 2022 से लगता है कि हम पीछे जा रहे हैं।
'डेमोक्रेसी मे ऐसा नहीं होना चाहिए'
मेरी फिल्म में आर्मी को मैं कोई गलत तरीके से नहीं दिखा रहा था। मैं तो इंडियन आर्मी का बहुत सम्मान करता हूं। जो एक सच्ची कहानी है, उसको प्रेजेंट किया। ऐसा डेमोक्रेसी में होना नहीं चाहिए कि किसी की सेक्सुएलिटी के ऊपर डिसाइड हो कि वो आर्मी ज्वॉइन कर सके या नहीं। उसका स्किल, इंटेलिजेंस और स्ट्रेंथ देखो। ऐसे कैसे हो सकता है कि सिर्फ हेट्रोसेक्सुअल लोग ही आर्मी ज्वॉइन कर सकते हैं और कोई कर ही नहीं सकता है। दुनिया में 56 देशों में सेना में एलजीबीटीक्यूआई लोगों को स्वीकार किया जाता है, लेकिन हम यहां पुराना ब्रिटिश लॉ लेकर ही बैठे हुए हैं।
यह बहुत दुखद है कि आप सच्चाई न बता सकते हो, न दिखा सकते हो। जबकि डेमोक्रेसी का खासियत होना चाहिए कि सिटीजन हर बात पर प्रश्न कर सके, गलत चीजों को बदल सके, नहीं तो दुनिया में बदलाव कैसे आएगा। एक्टिविस्ट काफी समय से जो फाइट कर रहे थे कि डिफेंस फोर्स में महिलाओं को स्थाई कमीशन मिले। वो भी वाॅर फ्रंट जाएं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश की बेटियों को उनका हक मिला। यह सब चेंज कैसे हुआ कि लोग उस पर प्रश्न कर रहे हैं। अगर हमें सवाल ही नहीं करने दिया जाएगा तो कैसे बदलाव आएगा। जो गलत है, वो गलत है।
'मुझे उम्मीद है कि ये सब बदलेगा'
मैं दोबारा से डिफेंस मिनिस्ट्री से डिटेल में अपील करूंगा। मुझे इतनी उम्मीद है कि हमारी आर्मी भी दुनिया की दूसरी आर्मीज की तरह प्रोग्रेसिव है। अभी इतने लोग बात कर रहे हैं, एक्टिविस्ट बात कर रहे हैं कि वो कम से कम सुनें कि क्यों ये इंपोर्टेंट है। ऐसा क्यों कि सिर्फ हेटरोसैक्सुअल ही डिफेंस में जा सकता है। पहले तो बोलता था कि सिर्फ मर्द आएंगे आर्मी में, अब औरतें भी आ गई लंबी लड़ाई के बाद। लेकिन एलजीबीटी लोग क्यों बाहर रहें। हमारा कल्चर में भी देखो कि शिखंडी के कारण हम महाभारत जीते न, वो फेमस वॉरियर था।
‘दुनिया आगे बढ़ गई, हम अभी भी वहीं अटके हैं’
देखिए इंडियन आर्मी का रिलेशनशिप सारे देशों की कंट्री से है। हमारा जो आर्मी एक्ट है वो ब्रिटिश टाइम से एक्ट है। ये तो ब्रिटिश है। अब हम ट्यून चेंज कर रहे हैं रिट्रीट मार्चिंग की। लेकिन हम ब्रिटिश लॉ तो नहीं छोड़ रहे। ब्रिटिश ने खुद 2000 में 22 साल पहले आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में गे कम्युनिटी को एक्सेप्ट किया। 2007 में यूके की डिफेंस मिनिस्ट्री ने एलजीबीटी कम्युनिटी से एपोलॉइज किया कि हमने आपको इतने सालों से डिस्क्रिमिनेट किया। 2022 में जो प्रोग्रेसिव कंट्री में आर्मी कोलेस्प तो नहीं हुआ था डिफेंस में गे कम्युनिटी के होने से। फिर हमारे यहां क्या प्रॉब्ल्म हो जाएगा, डिफेंस में एलजीबीटी कम्युनिटी के आने से। लैटिन अमेरिकन, यूरोपियन, अमेरिकन, न्यूजीलैंड, साउथ एशियन सब जगह एक्सेप्ट कर रहे है। अभी 56 देशों में डिफेंस में एलजीबीटी कम्युनिटी को मान्यता मिली है। वहां क्या आर्मी खत्म हो गया। यह समझ नहीं आया कि यहां क्यों नहीं एक्सेप्ट कर रहे।
कौन है भारतीय सेना के पूर्व मेजर जे सुरेश?
भारतीय सेना के पूर्व मेजर जिन्होंने दो साल पहले खुद ही अपने जीवन के बारे में बताया था। मेजर जे सुरेश ने 11.5 सालों तक भारतीय सेना में सेवाएं देने के बाद 2010 में सेना से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे की वजहों में से एक उनका समलैंगिक होना भी था। जुलाई 2020 में मेजर सुरेश ने एक ब्लॉग लिखकर और मीडिया संगठनों को साक्षात्कार देकर अपने समलैंगिक होने के बारे में खुलकर बताया था।
उन्होंने बताया था कि कि लगभग 25 साल की उम्र में जब वो खुद भी अपनी समलैंगिकता को स्वीकार करने से जूझ रहे थे, सेना की 'हाइपर स्ट्रेट' (अति विषमलैंगिक) दुनिया ने उनके लिए स्थिति और मुश्किल बना दी थी। उन्हें ऐसा लगता था कि अगर वो सेना में किसी को अपनी समलैंगिकता के बारे में बताएंगे जो उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा, बल्कि मुमकिन है कि उन्हें बेइज्जत कर सेना से निकाल ही दिया जाएगा।
कई सालों की जद्दोजहद के बाद मेजर सुरेश ने धीरे धीरे हिम्मत जुटा कर अपने परिवार और दूसरे करीबी लोगों को अपने समलैंगिक होने के बारे में बताया और उसके बाद सेना से भी इस्तीफा दे दिया।
भास्कर एक्सक्लूसिव: गे फिल्ममेकर ओनिर का सवाल- क्या सेना की नजर में समलैंगिकता गैर कानूनी, फिर SC के ऐतिहास... - Dainik Bhaskar
Read More
No comments:
Post a Comment