हमने अक्सर किताबों व फिल्मों में ऐसे लोगों की कहानियां पढ़ी व देखी हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में सक्सेस का परचम लहराया है. फेलियर लोगों के बारे में शायद ही कोई बात करता है. सौ में से कोई एक होता है, जिसे कामयाबी मिलती है लेकिन जर्सी की कहानी उन 99 लोगों को डेडिकेट है, जिनकी दास्तां कभी सुनी या कही ही नहीं गई. जर्सी चंडीगढ़ के एक रणजी स्टार क्रिकेटर अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) के करियर की जर्नी पर आधारित है. फिल्म साउथ सुपरस्टार नानी स्टारर जर्सी (तेलुगू) की हिंदी रीमेक है. फिल्म के हिंदी डायरेक्शन की जिम्मेदारी भी ओरिजनल डायरेक्टर गौतम तिन्ननुरी ने ही संभाली है.
कहानी
अपने शहर के पॉपुलर रणजी स्टार अर्जुन तलवार इंडियन टीम में सिलेक्शन न होने की वजह से 26 साल की उम्र में अपने क्रिकेट के टॉप करियर को छोड़ने को फैसला लेते हैं. अब सरकारी नौकरी कर अर्जुन अपनी वाइफ विद्या (मृणाल ठाकुर) और बेटे किट्टू (रोनित कामरा) की जिम्मेदारी संभालते हैं. इसी बीच अर्जुन पर झूठा केस लगने की वजह से उन्हें नौकरी से हाथ गंवाना पड़ता है. अब घर की सारी जिम्मेदारी विद्या पर है, जो एक होटल में रिसेप्शनिस्ट का काम करती हैं. पैसे की तंगी और अर्जुन की लापरवाही उनके रिश्ते में दूरी ले आती है. हालांकि इस दौरान अर्जुन अपने बेटे के बेहद करीब आ जाता है. बेटे की नजर में एक बेहतर पिता बनने की सारी कोशिश करता है. कहानी उस वक्त मोड़ लेती है, जब बेटा किट्टू अपने जन्मदिन पर पापा से जर्सी की डिमांड करता है. और उसकी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए अर्जुन के पास 500 रुपये तक नहीं होते हैं. अपने बेटे की नजर में लूजर बनने के डर से अर्जुन अपने दस साल से छूटे करियर क्रिकेट की ओर लौटता है. हालांकि 36 साल की उम्र में क्रिकेटर बनने का सपना क्या अर्जुन साकार कर पाते हैं, और बेटे को जर्सी दिला पाते हैं. इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
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डायरेक्शन और टेक्निकल
फिल्म के डायरेक्टर गौतम तिन्ननुरी ने ही ओरिजनल फिल्म बनाई है. रीमेक में भी उनकी मेहनत साफ दिखी है. गौतम ने कहानी में स्पोर्ट्स और फैमिली ड्रामा का बैलेंस बखूबी बनाए रखा है. एक असफल खिलाड़ी के इमोशन और उसका फ्रस्ट्रेशन गौतम ने संजीदगी से परदे पर परोसा है. हालांकि कुछ जगहों पर गौतम इमोशन का वो इंटेंस साबित नहीं कर पाए हैं, मसलन फर्स्ट हाफ में जब अर्जुन क्रिकेट एसोसिएशन से मिलकर बतौर क्रिकेटर खेलने की जिद्द करता है. सीन इंटेंस होने के बावजूद इमोशन डिलीवर नहीं हो पाते हैं. वहीं कुछ जगह मैच को इतने इंट्रेस्टिंग तरीके से परोसा गया है कि आप भी फिल्म भूलकर उसकी हार-जीत में लग जाते हैं. एडिटिंग की बात करें, तो कहानी का फर्स्ट हाफ थोड़ा खिंचा सा लगता है लेकिन सेकेंड हाफ के दौरान कहानी ग्रिप पकड़ती है. फिल्म को 30 साल के फ्रेम में बनाया गया है, कहानी 80 दशक से आज के दौर के अंतराल में घूमती रहती रहती है. सिनेमैटोग्राफी की जिम्मेदारी अनिल मेहता ने संभाली है. क्रिकेट स्टेडियम के मैच को बेहतरीन तरीके से शूट किया गया है. सचेत-परंपरा के म्यूजिक ने एल्बम में फ्रेशनेस डाली है. अनिरुद्ध रविचंदर का ब्रैकग्राउंड स्कोर कमाल का है. सीन के हर इमोशन के साथ सटीक बैठता है.
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एक्टिंग
एक्टिंग के मामले में शाहिद ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि इमोशन चाहे जो भी हो वो पर्दे पर उसे बखूबी जी जाते हैं. कई बार पर्दे पर उनकी कबीर सिंह वाली इमेज की झलक मिलती है. कोच के रूप में पंकज कपूर एक फ्रेश एहसास दिलाते हैं. असल जिंदगी में बाप बेटे की यह जोड़ी स्क्रीन पर कोच और प्लेयर की जोड़ी में सहज लगी है. मृणाल ठाकुर ने विद्या के किरदार में अपनी जान फूंक दी है. किट्टू के किरदार में रोनित कामरा सरप्राइज कर जाते हैं. रोनित और शाहिद जब भी स्क्रीन पर आते हैं, इनकी बॉन्डिंग कहीं न कहीं आपको इमोशनल कर देती है.
क्यों देखें
अगर आप क्रिकेट लवर हैं और इसे स्पोर्ट्स के लिहाज से देखने जा रहे हैं, तो निराशा हाथ लग सकती है. लेकिन बेहतरीन कहानी और दमदार एक्टिंग से बुनी फिल्म देखनी है, तो दावा है फिल्म आपको निराश नहीं करेगी. बल्कि एक खूबसूरत से इमोशनल राइड पर लेकर जाएगी.
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