आज है 13 अप्रैल. हमने देखी तमिल सुपरस्टार थलपति विजय की Beast.
एक था रॉ एजेंट वीरा. था किसलिए, इसके लिए फ़िल्म देखिए. हां, तो एजेंट जाता है मॉल. पैदा होती है हॉस्टेज सिचुएशन. वो हीरो टाइप सबको बचाने की ठानता है. आतंकवादियों से अकेले भिड़ जाता है. इसी लॉगलाइन के इर्दगिर्द पूरी कहानी घूमती है. टिपिकल साउथ इंडियन फ़िल्म. स्लो मोशन में होता ऐक्शन. अकेला आदमी 50 लोगों से भिड़ रहा है. उसे किसी का खौफ़ नहीं. गोलियां चल रही हैं. वो उनके बीच से बचकर निकल जा रहा है. उसे सबकुछ आता है. यहां तक कि प्लेन चलाना भी. प्लेन ऐसे चल रहा है जैसे कोई बाइकर पतली गलियों से फुल स्पीड में बाइक चला रहा हो. चारों ओर लोग मरके गिर रहे हैं. हीरो अपने स्वैग में चल रहा है.
ऐसा लगता है कि फ़िल्म के डायरेक्टर-राइटर नेल्सन ने कई सारी हॉस्टेज फिल्में देखीं. उनकी खिचड़ी बनायी और दर्शकों के सामने पेश कर दी. इसी में पाकिस्तान का ऐंगल घुसेड़ दिया. पाकिस्तान है तो आतंकवाद का होना कंपल्सरी है. कई सारे एलिमेंट्स भी इधर-उधर से उठाए लगते हैं. जैसे कुल्हाड़ी का प्रयोग. एस्केप के लिए एसी टनल का इस्तेमाल. कई सारे शॉट्स भी कॉपी लगते हैं. यदि आपने 1988 में आई ब्रूस विलिस स्टारर डाई हार्ड देखी है, तो बीस्ट देखते समय कहीं-कहीं आपको यह उसकी कॉपी भी लग सकती है. फ़िल्म पर कई सेंसलेस बॉलीवुड फिल्मों का भी असर देखने को मिलता है. फ़िल्म को बहुत खींचा गया है. जब लगता है मूवी अब खत्म होगी, कुछ नया शुरू हो जाता है. हां, फ़िल्म का मार्केटिंग पहलू अच्छा है. इसमें आप हिन्दी-अंग्रेजी खूब पाएंगे, कहीं-कहीं तेलुगु. और तमिल तो फ़िल्म की मूल भाषा ही है. साउथ की फिल्में भी हॉलीवुड की तरह हिन्दीभाषी ऑडियंस की ताकत को पहचान रही हैं. बीस्ट उसका शानदार उदाहरण है.
फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफी ठीक है. ऐक्शन शॉट्स अच्छे हैं. कुछ-कुछ शॉट्स बहुत अच्छे हैं. जैसे टूटे हुए ग्लास के बाहर से विजय को दिखाया जाने वाला शॉट, बेहतरीन है. पर दुर्भाग्यवश वो भी डाईहार्ड की कॉपी लगता है. म्यूजिक ओके-ओके है. एडिटिंग भी ठीक है. ऐक्शन सीक्वेंसेज की एडिटिंग बढ़िया है. VFX कुछ खास नहीं है. एकआध जगह तो बनावटी लगता है. जब विस्फोट के बीच से प्लेन निकलता है. साफ-साफ लगता है VFX है. VFX और DI की यह खासियत होती है कि देखने वाले को पता न चले कि यहां कुछ खेल हुआ है, जब तक वो गौर न करे. यहां तो गौर करने की जरूरत ही नहीं पड़ती.
विजय रॉ एजेंट वीरा के रोल में ठीक वैसे ही हैं जैसे वो अपनी दूसरी फिल्मों में होते हैं, कुछ अलग नहीं है. पूजा हेगड़े बस हैं. उन्हें स्क्रीनटाइम बहुत कम दिया गया है. सेल्वाराघवन ने हॉस्टेज नेगोशिएटर के रोल में अच्छा काम किया है. योगी बाबू ने बढ़िया कॉमिक किरदार निभाया है. अंकुर विकल ने हॉस्टेज मास्टरमाइन्ड के रोल में सधा हुआ अभिनय किया है. बाक़ी सबका काम ठीकठाक है.
कुल मिलाकर विजय के फैन हैं तो फ़िल्म देखने जाएं. नहीं तो रिस्क है गुरु. अपने रिस्क पर जाना है तो खुशी-खुशी जाएं.
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