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Friday, May 27, 2022

भास्कर एक्सप्लेनर: पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे या राजपूत? जानिए क्यों अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म को लेकर म... - Dainik Bhaskar

एक घंटा पहलेलेखक: अभिषेक पाण्डेय और नीरज सिंह

अक्षय कुमार की नई फिल्म 'पृथ्वीराज' को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। राजस्थान के गुर्जर और राजपूत दोनों समुदायों का दावा है कि पृथ्वीराज चौहान उनके समुदाय से थे। अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने दावा किया है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर समुदाय से थे, इसलिए फिल्म में उन्हें उसी तरह दिखाया जाए।

राजपूतों की श्री राजपूत करणी सेना ने कहा है कि फिल्म के टाइटल में पृथ्वीराज के आगे सम्राट जोड़ा जाए, नहीं तो वे इस फिल्म का विरोध करेंगे। इस विवाद ने आखिरी हिंदू सम्राट माने जाने वाले पृथ्वीराज चौहान को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। अक्षय कुमार के लीड रोल वाली फिल्म पृथ्वीराज 3 जून को रिलीज हो रही है।

चलिए जानते हैं कि आखिर कौन थे पृथ्वीराज चौहान? क्यों उन्हें कहा जाता है आखिरी हिंदू सम्राट? पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे या राजपूत?

पृथ्वीराज चौहान को क्यों गुर्जर बता रहा गुर्जर समुदाय?

गुर्जर समाज का दावा है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे न कि राजपूत। पृथ्वीराज के गुर्जर होने के दावे को लेकर गुर्जर समुदाय कई तर्क दे रहा है। गुर्जर नेता हिम्मत सिंह का कहना है कि पृथ्वीराज फिल्म चंदबरदाई द्वारा लिखी गई 'पृथ्वीराज रासो' पर आधारित है और ऐसा ही पृथ्वीराज फिल्म के टीजर में दिखाया गया है।

हिम्मत सिंह का दावा है कि इतिहास में उपलब्ध अभिलेखों के अध्ययन के आधार पर रिसर्चर्स का मानना है कि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान के शासन के करीब 400 साल बाद 16वीं सदी में पृथ्वीराज रासो लिखी थी, जो कि काल्पनिक है। चंदबरदाई को ब्रज भाषा का पहला कवि माना जाता है, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के जीवन का वर्णन करने वाला महाकाव्य पृथ्वीराज रासो लिखा था।

सिंह का कहना है कि पृथ्वीराज रासो पिंगल भाषा में लिखी गई है, जोकि ब्रज और राजस्थानी भाषा का मिश्रण है। उनका कहना है कि गुर्जर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासन के दौरान संस्कृत भाषा का इस्तेमाल होता था, पृथ्वीराज रासो में प्रयोग की गई पिंगल भाषा का नहीं।

चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो नामक महाकाव्य लिखा था, जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन का वर्णन मिलता है

चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो नामक महाकाव्य लिखा था, जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन का वर्णन मिलता है

अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा के संरक्षक आचार्य वीरेंद्र विक्रम का दावा है कि कदवाहा और राजोर के शिलालेखों में, तिलक मंजरी, सरस्वती कंठाभरण, पृथ्वीराज विजय के शिलालेखों में पृथ्वीराज के गुर्जर होने के प्रमाण मिले हैं।

उनका कहना है कि पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के सर्ग 10 के श्लोक नंबर 50 में पृथ्वीराज के किले को गुर्जर दुर्ग लिखा है, जबकि सर्ग 11 के श्लोक नंबर 7 और 9 में गुर्जरों द्वारा गोरी को पराजित करने का जिक्र है। इससे यह साबित होता है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर समुदाय से थे।

वीरेंद्र विक्रम का दावा है कि पृथ्वीराज रासो के आदि पर्व के पार्ट 1 के 613वें छंद में पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर को गुर्जर के रूप में वर्णित किया गया है।

12वीं सदी में राज करने वाले पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर अपने और राजपूत अपने समुदाय का होने का दावा कर रहे हैं

12वीं सदी में राज करने वाले पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर अपने और राजपूत अपने समुदाय का होने का दावा कर रहे हैं

राजपूत समुदाय ने खारिज किए पृथ्वीराज चौहान के गुर्जर होने के दावे

राजपूत समुदाय ने पृथ्वीराज चौहान को लेकर किए गए गुर्जरों के दावों पर कड़ी आपत्ति जताई है। श्री राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता वीरेंद्र सिंह कल्याणवत का कहना है कि गुर्जर शुरुआत में 'गउचर' थे, जो इसके बाद गुज्जर और फिर गुर्जर में परिवर्तित हुए। वे मुख्यत: गुजरात से आते है और इसीलिए उन्हें ये नाम मिला। गुज्जर शब्द गउचर शब्द से आया और ये लोग सिंधु घाटी में रहते थे। इसी तरह राजपूत शब्द राजपूताना से आया, जाति के आधार पर हम क्षत्रिय हैं।

कल्याणवत का कहना है कि पृथ्वीराज के वंशज अजमेर में रह रहे हैं। उनके पास अपने वंश का पूरा प्रमाण है। भारत में, वंशावली का पता लगाना कठिन नहीं है, क्योंकि गया, हरिद्वार और पुष्कर में पीढ़ियों के पुराने रिकॉर्ड संरक्षित हैं। यहां तक कि सरकारें भी उन्हें वैध रिकॉर्ड के रूप में स्वीकार करती हैं।

अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष महेंद्र सिंह तंवर और ''पृथ्वीराज चौहान-अ लाइट ऑन मिस्ट'' नामक किताब लिखने वाले इतिहासकार वीरेंद्र सिंह राठौर ने एक इंटरव्यू में गुर्जरों के इस दावे को खारिज किया है।

महेंद्र सिंह तंवर ने ''पृथ्वीराज विजय'' महाकाव्य के सर्ग 10 के 50वें श्लोक में पृथ्वीराज चौहान के किले को गुर्जर दुर्ग बताए जाने के दावे पर कहा कि सर्ग में जिस गुर्जर किले का जिक्र है, वह गुर्जर (गुजरात) क्षेत्र के एक किले को दर्शाता है न कि गुर्जर समुदाय के।

राजपूत इतिहासकारों का कहना है कि इस बात के कई प्रमाण मौजूद हैं कि पृथ्वीराज चौहान राजपूत राजा थे।

राजपूत इतिहासकारों का कहना है कि इस बात के कई प्रमाण मौजूद हैं कि पृथ्वीराज चौहान राजपूत राजा थे।

राठौर का कहना है कि इस सर्ग में शाकंभरी चौहान वंश के पृथ्वीराज चौहान के किले का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे पृथ्वीराज संबंधित थे। इस सर्ग में जिस किले का जिक्र है, वह नाडोल क्षेत्र के शासक नादुला चौहान का किला है।

पृथ्वीराज चौहान के समय में राजपूतों के नहीं होने के दावों को गलत बताते हुए इतिहासकार राठौर का कहना है कि राजपूत वैदिक समाज जितने ही पुराने हैं, क्योंकि राजपूत और क्षत्रिय एक-दूसरे के पर्यायवाची रहे हैं। हमारे हजारों वर्षों के इतिहास में ऋग्वेद से लेकर रामायण और महाभारत तक, पाली साहित्य से कथा सरितासागर तक, उपनिषदों से लिच्छवी शिलालेखों तक... हर जगह राजपूत का प्रयोग साहित्य में क्षत्रिय के साथ परस्पर रूप से किया गया है।

राठौर गुर्जरों के राजपूत में कनवर्ट होने के दावे को भी खारिज करते हुए कहते हैं कि ब्रिटिश गजेटियर्स और ‘देवनारायण की फड़’ के मुताबिक, गुर्जर खुद राजपूत राजवंशों से आए।

देवनारायण की फड़ एक कपड़े पर बनाई गई देवनारायण की महागाथा है, जो मुख्यतः राजस्थान और मध्य प्रदेश में गाई जाती है। राजस्थान में फड़ पर बने चित्रों को देखकर गाने गाते हैं, जिसे राजस्थानी भाषा में 'पड़ का बाचना' कहा जाता है। देवनारायण भगवान विष्णु के अवतार थे। इनका जन्म विक्रम संवत के अनुसार 968 में हुआ था।

अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान

इतनी प्रसिद्ध हस्ती होने के बावजूद पृथ्वीराज के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। उनके बारे में जानकारी केवल कुछ ही समकालीन शिलालेखों में उपलब्ध हैं। पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था। पृथ्वीराज चौहान (चाहमान) वंश के राजा थे। उन्होंने सपदलक्ष क्षेत्र पर शासन किया और उनकी राजधानी अजमेर थी।

1166 में पृथ्वीराज का जन्म हुआ था। 1177 ईस्वी में नाबालिग रहते हुए ही उन्हें राजगद्दी मिल गई थी। पृथ्वीराज को जो राज्य विरासत में मिला, वह उत्तर में थानेसर से दक्षिण में जहाजपुर (मेवाड़) तक फैला था। इसके चलते ही उन्होंने विस्तारवादी नीति अपनाई। साथ ही पड़ोसी राज्यों के खिलाफ सैन्य कार्रवाईयों विशेष रूप से चंदेलों को हराकर अपने राज्य का विस्तार किया।

पृथ्वीराज ने आसपास के राजपूत वंश के राजाओं को एकजुट किया और 1191 ईस्वी में तराइन के पहले युद्ध में मोहम्मद गोरी को हराया था। माना जाता है कि युद्ध में बुरी तरह घायल होने के बाद मोहम्मद गोरी भाग गया था। वहीं कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, पृथ्वीराज ने युद्ध जीतने के बावजूद गोरी को जिंदा छोड़ दिया था।

हालांकि 1192 ईस्वी में गोरी तुर्की घुड़सवार तीरंदाज सेना के साथ लौटा और तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया। इसके बाद गोरी ने सिरसा में पृथ्वीराज को पकड़ लिया और उनकी हत्या कर दी।

पृथ्वीराज रासो में क्या लिखा है?

पृथ्वीराज चौहान को अंतिम हिंदू सम्राट माना जाता है। चंदबरदाई की ब्रजभाषा में लिखी कविता पृथ्वीराज रासो में 12वीं शताब्दी के राजा पृथ्वीराज चौहान को एक निडर और कुशल योद्धा बताया गया है। चंदबरदाई ने अपने कविता के अंत में लिखा है कि 1192 ईस्वी में तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गोरी से हार के बाद पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया जाता है।

इसके बाद चौहान को गजनी ले जाया गया, जो आज का अफगानिस्तान है। यहां पर पृथ्वीराज चौहान को अंधा कर कैद कर दिया जाता है। कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान को शब्दभेदी बाण चलाना आता था। मोहम्मद गोरी इसके बाद चौहान को अपनी बाण चलाने की प्रतिभा दिखाने की चुनौती देता है।

इस दौरान मोहम्मद गोरी एक बहुत ऊंचे स्थान पर बैठा था। चौहान और उनके राजकवि चंदबरदाई उनके साथ ही नीचे जमीन पर बैठे हुए थे। 25 गज की ऊंचाई पर घंटा टंगा हुआ था। चौहान को घंटे की आवाज पर ही निशान लगाना था। बाएं-दाएं का हिसाब लगाकर कवि ने अपने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को अपनी कविता ’’चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुलतान है मत चूको चौहान’’ के जरिए ये जानकारी दी कि मोहम्मद गोरी कहां और कितना ऊपर बैठा है।

इसके बाद चौहान ने अपनी अंगुलियों से गणना की और जब घंटा बजा, तब चौहान ने सीधे मोहम्मद गोरी को ही निशाना बना दिया। बाण लगते ही गोरी अपने तख्त से लुढ़ककर सीधे नीचे आ गया और उसकी मौत हो गई। गोरी की सेना पृथ्वीराज और चंदबरदाई को मारती इसके पहले ही वे दोनों एक-दूसरे के सीने में चाकू मारकर वीरगति को प्राप्त हो गए। माना जाता है कि चंदबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे।

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