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Thursday, October 6, 2022

Maja Ma Review: पारिवारिक मनोरंजन के नाम पर ये है ‘सच का सामना’, माधुरी के होने पर भी मजा कम और टेंशन ज्याद... - Zee News Hindi

Madhuri Dixit Film: पिछले दिनों जब माधुरी दीक्षित की नई फिल्म मजा मा का ट्रेलर रिलीज हुआ था, तो देखकर लगा कि त्यौहारों के मौसम में कुछ ऐसा आ रहा है, जो मजा देगा. परिवार का इमोशनल ड्रामा. मां-बाप, बेटा-बेटी, थोड़ा यूएस-थोड़ा इंडिया, गर्लफ्रेंड को घर लेकर आया लड़का, गरबा, नाच-गाना, कुछ मीठा-कुछ नमकीन, थोड़ी कॉमेडी-थोड़ी हंसी. लेकिन फिल्म शुरू हुए आधा घंटा भी नहीं गुजरता कि मन में फूले गुब्बारे की हवा निकलने लगती है. अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई इस फिल्म की कहानी में आता है परिवार का तनाव, पीढ़ियों का अंतर, अविश्वास, समलैंगिकता की बातें, एलजीबीटीक्यूआईए प्लस का एजेंडा, सेक्स पर नादान चर्चा, थोड़ी बेहयाई, प्रेमरहित दांपत्य और विवाह तय करने के लिए लड़के और उसकी मां का लड़की के पिता द्वारा लाई डिटेक्टर टेस्ट. इतना सब देखकर यही लगता है कि त्यौहार के ही नहीं, किसी भी मौसम में मजा मा से मजा नहीं मिल सकता.

कहानी में लाई डिटेक्टर टेस्ट
निर्देशक आनंद तिवारी ने अपनी डेब्यू वेब सीरीज बंदिश बेंडिट्स (2020) में जितनी खुशी दी थी, वह सूद समेत मजा मा में वसूल लेते हैं. बेहद निराश करते हैं. कहानी का मूल विचार है कि किसी स्त्री का मां-बहन-बीवी-बेटी होने के अलावा भी अस्तित्व है. बात गलत नहीं है. लेकिन मजा मा की सुई अटक जाती है, यहां मां समलैंगिक है! यह उसके अस्तित्व का प्रश्न है. कहानी का सारा ताना-बाना इसी पर सिमट जाता है. यूएस में नौकरी करने वाला तेजस (ऋत्विक भौमिक) वहां के बेहद रसूखदार हंसराज दंपति (रजित कपूर-शीबा चड्ढा) की बेटी एशा (बरखा सिंह) से प्यार करता है. एशा भी उसे चाहती है, लेकिन उसके पिता तेजस का लाई डिटेक्टर टेस्ट कराते हैं कि कहीं लड़का दौलत या ग्रीनकार्ड के लालच में तो लड़की से शादी नहीं करना चाहता. चलिए, यह भी ठीक है. इंडिया में दोनों के परिवार मिलते हैं और तेजस-एशा की सगाई की तैयारी हो रही है कि तभी एक वीडियो आता है, जिसमें तेजस की मां पल्लवी पटेल (माधुरी दीक्षित) अपनी बेटी पर गुस्से में चिल्लाते हुए कह रही है कि हां मैं लेस्बियन हूं. हंसराज दंपति इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेते हैं और फिर पल्लवी पटेल का भी लाई डिटेक्टर टेस्ट होता है.

स्त्री अस्मिता से समलैंगिक अधिकारों तक
धीरे-धीरे आप देखते हैं कि फिल्म पारिवारिक स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व की वकालत करते हुए, समलैंगिकों के जीवन को केंद्र में ले आती है। तब पता चलता है कि मजा मा का असली मुद्दा समलैंगिकों के अधिकारों, समाज में उनकी स्वीकृति और उन्हें खुल कर अपनी पहचान के साथ बिना किसी शर्म-झिझक के जीने देने का है. यह भी सही है, लेकिन बहुतों के लिए यह मुद्दा कड़वी गोली है, जिस पर अमेजन प्राइम के साथ मिलकर निर्देशक आनंद तिवारी और राइटर सुमित बथेजा ने माधुरी दीक्षित के नाम का मीठा लेप चढ़ाया है. लेकिन सच यही है कि किसी भी कोण से देखने पर फिल्म एंटरटेन नहीं करती बल्कि थोड़ी देर बाद फिल्म में उठाए गए तमाम मुद्दे अपने रिपीट मोड के कारण बोर करने लगते हैं. वजह है, कच्ची कहानी, कमजोर केरेक्टराइजेशन और खराब स्क्रिप्ट राइटिंग. डायलॉग्स की बात तो छोड़ ही दीजिए.

ये है कहानी और किरदारों का सच
पल्लवी की बेटी यहां समलैंगिकों के जीवन पर पीएचडी कर रही है और उनके हक के लिए लड़ती है. यह बेहद लाउड कैरेक्टर है. पल्लवी का बेटा तेजस मां का ‘इलाज’ कराने के लिए एक बाबाजी के पास ले जाता है. पल्लवी का पति इतना बेखबर है कि मूर्ख जैसा नजर आता है. असल में लेखक-निर्देशक ने कहानी को फेमिनिज्म का चोला ओढ़ाया और मौका देखते ही एलजीबीटीक्यूआईए प्लस के एजेंडे में बदल दिया. लेकिन वे कहानी को ढंग से नहीं कह पाए हैं. पल्लवी और कंचन (सिमोन सिंह) के बीच समलैंगिक प्रेम अथवा आकर्षण उनकी किशोरवस्था में गरबा के दिनों के एक सीन के साथ ही खत्म हो जाता है. बेटे की सगाई की तैयारी में लगी पल्लवी के घर कंचन का आना और रहना, कहानी का हिस्सा नहीं बन पाता. लव मैरिज में रिश्ते जोड़ने के नाम पर लाई डिटेक्टर टेस्ट का नया रास्ता भी यहां राइटर-डायरेक्टर ने सुझाया है. प्यार और रिश्ते का नाता अमीरों के सामने गरीबों का ‘सच का सामना’ बन जाता है. यहां मां को लाई डिटेक्टर टेस्ट के लिए राजी करता हीरो उसे याद दिलाता है कि तुमने देखा होगा एक टीवी शो आता था, जिसमें राजीव खंडेलवाल लोगों से बड़े अंतरंग और निजी सवाल करके उनकी सच्चाई उगलवाता था. इस कहानी के बेटे में कहीं रीढ़ की हड्डी ही नहीं दिखती.

मजा कम, टेंशन ज्यादा
सवा दो घंटे की यह फिल्म आधे घंटे के अंदर मजा खो देती है और टेंशन में बदल जाती है. जो धीरे-धीरे बढ़ता जाता है. माधुरी दीक्षित जरूर कुछ दृश्यों में अच्छी लगी हैं और उनका अभिनय शानदार है. गजराज राव अपने कैरेक्टर में हैं. रजित कपूर और शीबा चड्ढा ने अपने किरदार बढ़िया ढंग से निभाए हैं. जबकि ऋत्विक और बरखा अपनी भूमिकाओं में असर नहीं छोड़ते. बरखा सिंह के हिस्से अपने बॉयफ्रेंड को मनाने और मां-बाप के साथ खड़े रहने के अलावा कोई सीन नहीं आया है. गरबा प्रधान और म्यूजिकल बताए जाने के बावजूद फिल्म का गीत-संगीत फीका है. त्यौहार के इस मौसम में परिवार के साथ देखने जैसा कंटेंट नहीं है यह.

निर्देशकः आनंद तिवारी
सितारेः माधुरी दीक्षित, ऋत्विक भौमिक, गजराज राव, बरखा सिंह, रजित कपूर, शीबा चड्ढा, सिमोन सिंह
रेटिंग **

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