ज़बान पर मेरे आया सत है,
बैठ के सुनिए अगर फ़ुर्सत है।
ख़्वाब होता है हक़ीक़त से परे,
चश्म पर ज़ेर-ए-हिरासत है।
साफ़-गोई उसे पसंद नहीं,
हमको आती नहीं सियासत है।
तल्ख़ बातें भी सुनी जाती हैं,
अगर बयान में नफ़ासत है।
शोर करिए न कू-ए-जानाँ में,
मेरे दिलदार की रियासत है।
जब से देखा है बे-नक़ाब उसे,
जान पर आन पड़ी साँसत है।
मेरे कलाम का जो बाइस है,
उसी के नाम की वसीयत है।
बहस उससे नहीं करो 'गौतम',
जो भी महरूम-ए-फ़रासत है।
- डाॅ. कुँवर वीरेन्द्र विक्रम सिंह गौतम
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8 hours ago
ज़बान पर मेरे आया सत है - अमर उजाला
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