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Sunday, July 16, 2023

ग़ज़ल - अमर उजाला

                
                                                                                 
                            कोई रस्ता, कोई गली, कोई डगर नही,
                                                                                                
                                                     
                            
तू साथ नही तो सफ़र सफ़र नही।
तू आँख में, ज़बाँ में, दिल में, जिगर में,
वो कौन सा हिस्सा है तू जिधर नही।
तू याद में आए तो धीरे आया कर,
तुझे सोचकर रो पड़ूँ इस क़दर नही।
तूने देखा है सिर्फ़ मुस्कुराता चेहरा,
मेरे हक़ीक़ी हालत से बाखबर नही।
अपने ही आँसू पीकर हर-भरा रहता हूँ,
नागफनी हूँ मैं कमज़ोर शजर नही।
आँखो से तलाशते हो मुझे, बेख़बर हो,
तुम्हारे दिल में हूँ मैं इधर-उधर नही।
तुम मुझे देख सको तुम्हारे बस की नही,
तुम आँख तो रखते हो पर नज़र नही।
तुमसे गले मिलकर दूर हो जाऊँ, ऐसे कैसे,
आशिक़ हूँ साहेबन, कोई लहर नही।
जिनकी चिट्ठी आयी उनसे नही मतलब,
जिससे मतलब था उसकी ख़बर नही।
वो आसमान में तस्वीर लगी है उसकी,
नही भई नही, वहाँ कोई क़मर नही।
है सिला मोहब्बत का जो गिरा पड़ा हूँ,
ये किसी शराब का कोई असर नही।
जैसी बेवफ़ाई की है उसने “रसमन”
मैं भी कर सकता हूँ, मगर नही।
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5 घंटे पहले

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